Thursday, July 24, 2008

क्या आप जानते हैं?

यह भी कैसी विडम्बना है की आज हमारे लोकतंत्र के मन्दिर यानि संसद में लोग पैसे देकर समर्थन हासिल कर लेते हैं। आपको याद होगा कि किस तरह चुनाव जीतने के बाद सोनिया गाँधी त्याग कि प्रतिमूर्ति के रूप में हमारे सामने उपस्थित हुई थी। डॉ मनमोहन सिंघ कि नीली पगड़ी पर भी कोई दाग़ नहीं था। उनका सफ़ेद कुरता पजामा भी बहुत उजला था। लेकिन जिस तरह इन दोनों महानुभावों ने सब कुछ दागदार कर दिया उससे तो यही लगता है कि सत्ता ऐसा नशा है जो सर चदकर बोलता है। विश्वास मत प्राप्त करने के बाद जिस तरह मनमोहन सिंघ ने अपनी प्रतिक्रिया दे उससे पता चल गया कि वे सत्ता के दलालों के हाथ में खेलने के लिए तैयार हैं। अभी तक तो वे सिर्फ़ अमेरिका के दलाल थे, लेकिन अब वे अमर सिंघ जैसे कमीने लोगों से भी हाथ मिला कर देश का बंटाधार करने में जुट गए हैं। बोफोर्स की दलाल सोनिया गाँधी के तो कहने ही क्या?