Thursday, July 23, 2009

नई कहानी कनचोदा

इस नई कहानी की शुरुआत कुछ इस तरह है -
"रात भर मेह बरसा था। भोर में देखा तो सब तरफ़ जल-थल हो रहा था। धान की बेरन तैयार हो चुकी थी और उन्हें लगाने का समय हो चला था। तभी लाला बढ़ई ने आकर बताया की कनचोदा मर गया।
मैंने छाता लिया और कनचोदे के घर की तरफ़ चल पड़ा। झीसी पड़ रही थी। गलियां दलदली हो रही थीं। गाँव की औरतें पलरी में धान की बेरने लेकर खेतों की तरफ़ चली जा रही थीं...."

Tuesday, July 14, 2009

नई कहानी

मेरी एक कहानी 'बुजरी' हंस के जुलाई २००९ के अंक में प्रकाशित हुई है। आप उसे पढ़ सकते हैं। उसके बाद मैं एक नई कहानी जल्द पेश करने वाला हूँ जिस पर काम लगभग समाप्त हो गया है। कहानी का शीर्षक है 'कनचोदा'।