Wednesday, September 23, 2009

लालदेंगा वाली सुषमा और उनके चम्मच विधायक डागा


आजकल मध्य प्रदेश में एक बवाल चल रहा हैवहां Bhopal Development Authority (BDA) के सीईओ मदन गोपाल रूसिया की गला घोंट के हत्या कर दी गई है, जिसमे बीजेपी के विधायक जीतेन्द्र डागा पर शक किया जा रहा हैडागा, सुषमा जी के बहुत करीबी हैं, अरे! वही सुषमा जी जो उत्तर-पूर्व के अलगाववादी लालदेंगा के करीबी रही हैं, बिल्कुल ठीक समझा, आपकी ही सुषमा स्वराज!

बात दरअसल यह है कि BDA ने भोपाल में कालोनी बनाने कि योजना तैयार की थी और भूमि अधिग्रहण किया जाना था। इसके लपेटे में डागा की ज़मीन भी रही थी और डागा के साथ आपकी सुषमा जी योजना को बदलने का दबाव डाल रही थींडागा ने रूसिया से कहा कि वह उनके साथ दिल्ली चल कर उनके वकील से बात कर लें और मामला ठीक हो जाएदोनों जने १० सितम्बर को हवाई जहाज से दिल्ली आए। उन्हें शाम को हवाई जहाज से वापस लौट जाना था लेकिन डागा ने कहा कि flight कैंसल हो गई है इसलिए ट्रेन से चला जाएगा

दोनों हज़रत निजामुद्दीन - हबीबगंज एक्सप्रेस में सवार हो गएडागा को भोपाल उतर जाना था और रूसिया को भोपाल के ही एक उपनगर हबीबगंज उतरना था जो भोपाल स्टेशन के बाद आता थाडागा के अनुसार जब वह भोपाल उतरने कि तैय्यारी करने लगे तो उन्होंने देखा की रूसिया का बैग और जूते तो रखे हैं लेकिन वह ख़ुद नहीं हैंडागा ने बताया की उन्हें लगा कि रूसिया वाशरूम गए होंगे, और वह ख़ुद भोपाल स्टेशन पर उतर गए

रूसिया जब घर नहीं पहुचे तो उनके घरवालों को चिंता हुई। उन लोगों ने गुमशुदगी की रपट लिखवाई। फिर पता चला रूसिया की लाश आगरा के पास पटरी के किनारे पड़ी है

डागा के ख़िलाफ़ कुछ हो नहीं पा रहा है क्योंकि मुख्यमंत्री को पता है डागा किसके कृपापात्र हैंसुषमा स्वराज का राज्य की राजनीति में बहुत दखल हैजब से उन्होंने मध्य प्रदेश में कदम रखा है उनकी संपत्ति भी बढ़ी हैमार्च २००६ में उनके और उनके घरवालों के पास ९३० ग्राम सोना था जो अब बढ़ कर २००५ ग्राम हो गया हैमार्च २००६ के बाद उनके पास एक mercedes benz गई है, उन्होंने .१४ करोड़ रुपिये अपने पति को लोन दिए हैं, और मुंबई में एक फ्लैट भी ख़रीदा है जिसकी अब तक उन्होंने एक करोड़, ३८ लाख, ९१ हज़ार, १५१ रुपिये चुकाए हैं

Friday, September 18, 2009

लगभग २५० साल पुरानी एक नज़्म यहाँ दे रहा हूँ, जिसे नजीर अकबराबादी ने लिखा है। पढ़ें और उस ज़माने की भाषा का लुत्फ़ उठायें -

बंजारा

इक हिर्सो हवा को छोड़ मियां

मत देस परदेस फिरे मारा

कज्जाक अजल का लूटे है

दिन - रात बजाकर नक्कारा।

क्या बधिया, भैसा, बैल, शुतर

क्या गोई, पिल्ला, सरभारा

क्या गेहूं, चावल, मोठ, मटर

क्या आग, धुआं, क्या अंगारा

सब थाट पड़ा रह जावेगा

जब लाद चलेगा बंजारा।

गर तू है लक्खी बंजारा

और खेत भी तेरी भारी है

ए गाफिल तुझ से भी चढ़ता

और बड़ा ब्योपारी है।

क्या शक्कर, मिसरी, कंद, गिरी

क्या सांभर मीठा, खारी है

क्या दाख, मुनक्का, सोंठ, मिर्च

क्या केसर, लौंग, सुपारी है

सब थाट पड़ा रह जावेगा
जब लाद चलेगा बंजारा।

ये बधिया लादे बैल भरे

जो पूरब - पच्छिम जावेगा

या सूद बढाकर लावेगा

या टूटा घाटा पावेगा

कज्जाक अजल का रस्ते में

जब भाला मार गिरावेगा

धन, दौलत, नाती, पोता क्या

इक कुनबा काम ना आवेगा

सब थाट पड़ा रह जावेगा

जब लाद चलेगा बंजारा।

सनद: यह पोस्ट उसी दिल्ली में लिखी गई जिस दिल्ली ने ना मीर की वकत की, ना ग़ालिब की। और लिखे जाने का बखत वही जब नौ दौलतिया वर्ग हंगोवर से जूझ रहा है। बकलम ख़ुद। लिख दिया ताकि सनद रहे और बखत पर काम आवे।

Sunday, September 06, 2009

मेहतर से भी गए गुज़रे

जिन्ना वाली पोस्ट की इस नई कड़ी में कुछ बातें जोड़ना चाहता हूँ। गाँधी जी ने नेहरू, पटेल और अन्य कांग्रेसियों के बारे में अपने एक मित्र से कहा था, "यह लोग कहते तो मुझको महात्मा हैं लेकिन मुझे मेहतर से भी गया गुज़रा मानते हैं।"
गांधीजी को पता कि जब तक अँगरेज़ जिन्ना को पाकिस्तान देने के लिए राज़ी नहीं होंगे तब तक जिन्ना कुछ नहीं कर पाएंगे। यही वजह थी गांधीजी ने माउंटबैटन से कहा था, "हिंदुस्तान छोड़ दें, फिर उसके बाद यहाँ अफरा-तफरी हो, अराजकता हो या चाहे जो हो। हम सब संभालेंगे।"
लेकिन नेहरू और पटेल के कारण उनकी एक नहीं चली।
पटेल तो माउंटबैटन के भारत पहुँचने से पहले ही पाकिस्तान की बात मान गए थे। उनको दो बार हार्ट अटैक हो चुका था, और वे डिबेट और बहसों से बचकर भारत के लिए जुटना चाहते थे। वे कहते थे कि जिन्ना को पाकिस्तान दे दो, वह कुछ वर्षों बाद भारत से दुबारा जुड़ने के लिए आ जायेंगे।
वहीं नेहरू को मनाने के लिए माउंटबैटन ने 'OPERATION SEDUCTION' शुरू किया जिसमें लेडी माउंटबैटन ने अहम् भूमिका निभाई। और नेहरू मान गए!!
महात्मा गाँधी को क्या आज भी मेहतर से भी गया गुज़रा नहीं माना जाता?

सनद - यह पोस्ट उसी दिल्ली में लिखी गई जहाँ की कोई चीज़ अपनी ख़ुद की नहीं । यहाँ तक कि मौसम भी नहीं। और लिखे जाने का बखत इतवार की अलसाई दुपहरी जब कुछ लोग पसर जाते हैं तो कुछ चिडिमार ब्लॉग में सर खपाते हैं। बकलम ख़ुद। लिख दिया ताकि सनद रहे और बखत पर काम आए।

Saturday, September 05, 2009

कौन है सेकुलर?



यारों ने बहुत कहा की कुछ जिन्नाह और जसवंत सिंह की पुस्तक के बारे में लिखोबात दरअसल यह है की मैं तो जिन्नाह का प्रसंशक हूँ और मैं जसवंत सिंह को इस लायक मानता हूँ की उनकी किताब ज़रूर पढ़ी जाएअगर देखा जाए तो जिन्नाह, अटल बिहारी वाजपेयी और जसवंत सिंह कुदरती तौर पर सेकुलर हैं लेकिन अपनी राजनैतिक महत्वाकांक्षा के कारण यह लोग सांप्रदायिक राजनीति करते रहेहिंदुस्तान में इस किताब पर इतना बावेला क्यों मच रहा है, यह मेरी समझ के परे हैपाकिस्तान में ज़रूर इस किताब पर चर्चा हो रही है, लेकिन वोह भी थोड़ा नेगेटिव अंदाज़ मेंवहां कुछ लोगों का कहना है की भारत में आज भी कायदे आज़म के प्रति लोगों में दुराव हैभारत में कोई सच को स्वीकार नहीं करता

मेरे पत्रिकारिता में गुरु समान और पाकिस्तान के अंग्रेज़ी के सबसे बड़े अखबार The News के ग्रुप एडिटर शाहीन सहबाई से बात हो रही थी, इसी मुद्दे पर। उन्होंने एक बात बात बड़े मार्के की कही की भारत में इतिहास लिखना और पढ़ना शुरू हो गया है लेकिन पाकिस्तान में आज भी इतिहास लिखने और पढने की रिवायत नहीं हैजसवंत सिंह ने कायदे आज़म के बारे में जो भी लिखा है उससे ज़्यादा internationally लिखा जा चुका हैउनका कहना था की पाकिस्तान में भी दो तरह के लोग हैंएक वे हैं जो कायदे आज़म को श्रद्धा से देखते हैं। दूसरे वे हैं जो कहते हैं कि कायदे आज़म तो आधे अँगरेज़ थे। जिया उल हक के ज़माने में हर जगह कायदे आज़म कि फोटो मिलती थी जिसमे वे जिन्नाह कैप लगाये और शेरवानी पहने नज़र आते थेजमात इस्लामी जो आज़ादी के पहले उन्हें 'काफिरे आज़म' कहती थी, आगे चल कर वोही जम्माते इस्लामी उनकी भक्त हो गईसहबाई साहब ने यह भी कहा कि भारत में तो किसी ने जिन्नाह पर किताब लिख दी, लेकिन क्या ऐसा हो सकता है कि पाकिस्तान में शेख रशीद गाँधी जी के अहिंसक आन्दोलन पर किताब लिखें? क्या ये कल्पना की जा सकती है कि मौलाना फज़लुर रहमान भारत की तेज़ी से बढती economy पर कुछ लिखें? मुद्दा यह नहीं है कि जिन्नाह पर किसने, कहाँ, क्या लिखामुद्दा यह है कि जिन्नाह कैसा पाकिस्तान चाहते थे! बहस इस बात पर होनी चाहिए

Tuesday, September 01, 2009

जीन्स पर बहस


आजकल जींस के बारे में काफी बहस चल पड़ी है। हमेशा ही चलती रही है। लेकिन इस बार तो हिन्दी के मान्यता प्राप्त कवि श्री राजेश जोशी भी मैदान में उतर आए हैं। सबसे पहले तो मैं साफ़ कर दूँ कि मैं जींस के ख़िलाफ़ नहीं हूँ। मेरी दोनों बेटियाँ जींस पहनती हैं। मैं यह भी मानता हूँ कि जींस में व्यक्ति स्मार्ट, चुस्त - दुरुस्त लगता है। वोह जींस पहनकर आसानी से काम कर सकता है। जींस टिकाऊ भी होती है और जल्दी ख़राब भी नहीं होती। शायद इसीलिए अमेरिका में कैदियों को जींस पहनाने का रिवाज चला। फिर उसके बाद हिंदुस्तान में आई लो वेस्ट वाली जींस। यह अमेरिका के कैदियों की देन है। अमेरिका में तो अब लोगों पर लो वेस्ट की जींस पहनने पर पाबन्दी भी लगा दी गई है।
हिन्दी के मान्यता प्राप्त कवि श्री राजेश जोशी ने एक सितम्बर के जनसत्ता में लिखा है कि जींस ने समाज में बराबरी पैदा कर दी है। लिखा है कि साड़ी और सलवार - कुरते में तो पहनने वाली कि औकात पता चल जाती है। कोई महँगी साड़ी और महंगा सलवार - कुरता पहनता है और कमतर पहनने वाली महिला को काम्प्लेक्स का शिकार होना पड़ता है। लेकिन जींस में ऐसा नहीं है।
यहाँ दो बातें हैं। पहली तो यह कि दो तरह की जींस बाज़ार में हैं। दिल्ली में पहले तरह की जींस टैंक रोड पर मिलती है जिसे आम लोग खरीदते हैं। दूसरी तरह की जींस मॉल्स, बड़े - बड़े शो रूम्स में मिलती है जिसे बड़े लोग ही खरीदते हैं। मॉल्स वाली जींस पहनने वाली लड़कियां टैंक रोड से खरीदी जींस पहनने वाली लड़कियों को नीची नज़रों से देखती हैं।
दूसरी बात यह कि हिन्दी के मान्यता प्राप्त कवि श्री राजेश जोशी ने सलवार - कुरते को जो कमतर बताया है तो मैं समझता हूँ कि उन्हें शायद यह पता नहीं कि साड़ी और सलवार - कुरता उपेक्षित लोगों का लिबास बन गए हैं। इन्हे पहनने वाली महिलाओं और लड़कियों को 'बहनजी' कहा जाता है, और जींस पहनने वाली बाला को आधुनिक!!
हिन्दी के मान्यता प्राप्त कवि श्री राजेश जोशी ने हुंकार भरी है कि जींस पहन कर ही कस्बाई मानसिकता और रहन - सहन वाली लड़की हर क्षेत्र में खटाखट आगे बढ़ सकती है। श्री जोशी ने कहा है कि जींस पहनने पर स्कूलों और कॉलेज में पाबन्दी नहीं लगायी जानी चाहिए जैसे जींस ही लड़कियों की तरक्की का अकेला रास्ता हो!