Monday, March 29, 2010

उल्लू के पट्ठों की तादाद में इजाफा 
भारत में अब तक दो तरह के उल्लू के पट्ठे थे. पहले वह जो इस वक़्त क़तर में बैठा कूची नुमा दाढ़ी लिए अपने घोड़ों को सहला रहा होगा. दुसरे वह उल्लू के पट्ठे हैं जो  सफ़दर हाश्मी के नाम पर करोड़ों डकार चुके हैं और सहमत बनाकर भगवान राम और सीता को भाई बहन साबित करने पर तुले रहते हैं.
अब तीसरे उल्लू के पट्ठे आ गए हैं, और वह हैं सुप्रीम कोर्ट के जज साहबान ! 
अभी हाल में इन उल्लू के पट्ठों ने औरत - मर्द के एक साथ रहने पर फैसला दिया है और कहा है की बिना शादी किये भी साथ साथ रहा जा सकता है. इस फैसले में जज साहबान ने भगवान कृष्ण और राधा जी को भी live in relationship में बताकर न जाने क्या साबित करने की कोशिश की है. इस तरह तो इन उल्लू के पट्ठों ने पुरे हिन्दू धर्म को ही अश्लील करार दे दिया. 
इसका मतलब यह भी हुआ की इन उल्लू के पट्ठों को हिन्दू धर्म के बारे में कुछ पता ही नहीं. भगवान श्रीकृष्ण और  राधिका जी के बारे में इन लोगों को पहले जान लेना चाहिए. 
श्री श्री परमहंस योगानंद जी ने श्रीमद भगवद्गीता की commentary में एक जगह लिखा है, The ancient sacred writings do not clearly distinguish history from symbology; rather, they often intermix the two in the tradition of scriptural revelation.
सुप्रीम कोर्ट के उल्लू के पट्ठों को यह बात मालूम होनी चाहिए. अगर मालूम होती तो वे भगवान श्रीकृष्ण और राधा जी के बारे में ऐसी अनर्गल बात नहीं लिखते. 
बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट के जज साहबान को अपने इस अक्षम्य अपराध के लिए माफ़ी माँगनी चाहिए और यह निश्चय करना चाहिए के ग़ैर धार्मिक मामलों में वह धर्म की बात नहीं करेंगे. 
इस वक़्त पुरे देश को सुप्रीम कोर्ट के इस कुकृत्य के खिलाफ आवाज़ उठानी चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट सबसे बड़ी अदालत है तो उसे मनमानी करने का अधिकार नहीं  मिल गया है.