बोल के लब आजाद हैं तेरे
बोल के ज़बां अब तक तेरी है
Monday, February 11, 2008
क्या भड़ास निकालना ज़रूरी है ?
सुधा जी ने लिखा है कि ब्लोग भड़ास निकालने का ज़रिया है। किसी के विचारों को अगर कोई भड़ास समझ ले तो कोई क्या कर सकता है। दुनिया में भड़ास नाम की कोई चीज़ नहीं होती, सब विचार ही होते हैं। सुधा जी जैसे अन्य पाठक भी अपनी अपनी 'भड़ास' जैसी चीज़ मेरे ब्लोग में निकाल सकते हैं।
हमेशा,
देर कर देता हूँ मैं,
हर काम करने में/
जरुरी बात कहनी हो,
कोई वादा निभाना हो,
उसे आवाज देनी हो,
उसे वापस बुलाना हो,
हमेशा,
देर कर देता हूँ मैं/
मदद करनी हो उसकी,
या के ढाढस बंधाना हो,
बहुत देरी न रस्तों पर, किसी से मिलने जाना हो,
हमेशा,
देर कर देता हूँ मैं/
बदलते मौसमों के शहर में,
दिल को लगाना हो,
किसी को याद रखना हो,
किसी को भूल जाना हो,
हमेशा,
देर कर देता हूँ मैं/
किसी को रूठने के पहले,
किसी गम से बचाना हो,
हकीक़त और थी कुछ,
उसको जा के बताना हो,
हमेशा,
देर कर देता हूँ मैं,
हर काम करने में.
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