बोल के लब आजाद हैं तेरे
बोल के ज़बां अब तक तेरी है
Tuesday, July 14, 2009
नई कहानी
मेरी एक कहानी 'बुजरी' हंस के जुलाई २००९ के अंक में प्रकाशित हुई है। आप उसे पढ़ सकते हैं। उसके बाद मैं एक नई कहानी जल्द पेश करने वाला हूँ जिस पर काम लगभग समाप्त हो गया है। कहानी का शीर्षक है 'कनचोदा'।
Arun Ji aaj shaam hi Prof. M Thakur k saath (JNU)'Dalit discourse' k tahat aapki kahani 'Bujri' ko recommend kar rahi thi. The question of internal inequalities and oppression through sanskritization' par baat ho rahi thi. Achha ittefaq hai ki aapko yahan janne ka mauqa mila. M also following critique n comments on it. Shimla - IIAS me hui 'Hindi ki Aadhunikta' workshop me bhi kisi ne Ajay Navariya se is kahani ko quote kartey huey sawal kiya tha, un sahab ka naam ab yaad nahi. Khair...is par achhi bahes ho rahi hai.
हमेशा,
देर कर देता हूँ मैं,
हर काम करने में/
जरुरी बात कहनी हो,
कोई वादा निभाना हो,
उसे आवाज देनी हो,
उसे वापस बुलाना हो,
हमेशा,
देर कर देता हूँ मैं/
मदद करनी हो उसकी,
या के ढाढस बंधाना हो,
बहुत देरी न रस्तों पर, किसी से मिलने जाना हो,
हमेशा,
देर कर देता हूँ मैं/
बदलते मौसमों के शहर में,
दिल को लगाना हो,
किसी को याद रखना हो,
किसी को भूल जाना हो,
हमेशा,
देर कर देता हूँ मैं/
किसी को रूठने के पहले,
किसी गम से बचाना हो,
हकीक़त और थी कुछ,
उसको जा के बताना हो,
हमेशा,
देर कर देता हूँ मैं,
हर काम करने में.
रोज़ सुबह की तरह आज भी मैं राजपथ पर टहलने निकला। राजपथ वो नहीं जिसपर पैरेड
होता है, अपने घर के बाहर वाली सड़क को भी मैं राजपथ ही कहता हूँ। वैसे भी कहन...
मिगुएल हर्नान्देज़ ऐसा कवि नहीं था , जैसा हम अक्सर अपने आसपास के कवियों के
बारे में जानते-सुनते हैं. उसका जीवन और उसकी कवितायेँ , दोनों के भीतर
संवेदना, अनु...
3 comments:
कमाल है। मैं आपको यहां वहां ढूँढ रहा हूँ और पता चला कि आप ब्लॉगर पर पहले से ही हैं।
आपको मैं बताना चाहता था कि आपकी कहानी बुजरी की समीक्षा हुई है मेरे ब्लॉग 'सफेद घर' पर ।
हो सके तो अपनी बात वहीं कमेंट में ही दे दें ताकि जो लोग पहले आपकी कहानी पर कमेंट दिये हैं उन्हे आपसे कुछ जवाब मिल जाय।
सतीश पंचम
मुंबई
email - satishpancham@gmail.com
सफेद घर ब्लॉग पर बुजरी कहानी का ये रहा लिंक।
http://safedghar.blogspot.com/2009/07/blog-post_19.html
Arun Ji aaj shaam hi Prof. M Thakur k saath (JNU)'Dalit discourse' k tahat aapki kahani 'Bujri' ko recommend kar rahi thi. The question of internal inequalities and oppression through sanskritization' par baat ho rahi thi.
Achha ittefaq hai ki aapko yahan janne ka mauqa mila.
M also following critique n comments on it. Shimla - IIAS me hui 'Hindi ki Aadhunikta' workshop me bhi kisi ne Ajay Navariya se is kahani ko quote kartey huey sawal kiya tha, un sahab ka naam ab yaad nahi. Khair...is par achhi bahes ho rahi hai.
भाई साहब, आपकी दोनों कहानी बुजरी और कनचोदा पढ़ने के लिए बेकरार हूं. कृपया किसी तरह उपलब्ध कराने की कृपा करेंगे?
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