अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने हाल में घोषणा की है की अफगानिस्तान में जो तालिबान हथियार डाल देंगे उसे दो लाख अमेरिकी डॉलर दिए जायेंगे. इसके पहले अमेरिका 'गुड तालिबान' से बात करने की इच्छा ज़ाहिर कर चुका है. दूसरी तरफ तालिबान ने आठ अक्टूबर २००९ को एक ऐलान किया था, 'हमारी विश्व के किसी भी देश पर हमला करने की कोई योजना नहीं है. हमारी योजना सिर्फ अफगानिस्तान को आजाद कराने और उसे इस्लामी देश बनाने भर की है.'
यह बात दिमाग में साफ़ रहनी चाहिए कि अमेरिका की कोई लड़ाई तालिबान से नहीं है. उसकी असली लड़ाई तो सिर्फ अल काएदा से है. और अगर तालिबान यह ज़मानत दे देते हैं कि वे अमेरिका और उसके दोस्त मुल्कों के खिलाफ अल काएदा को अपनी ज़मीन का इस्तेमाल नहीं करने देंगे तो बस फिर क्या है ! अमेरिका तालिबान के साथ समझौता कर लेगा.
ऐसी हालत में भारत क्या करेगा ? भारत अफगानिस्तान में एक अरब डॉलर की मदद दे चुका है. अफगानिस्तान से ही उसे पाकिस्तान की अक्ल ठिकाने लगाने का ठिकाना भी मिला हुआ है. यह सब पानी हो जायेगा क्योंकि तालिबान के साथ समझौता होने के बाद जो सरकार अफगानिस्तान में बनेगी वह पाकिस्तान को बहुत रास आयेगी और भारत को और मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा. इसलिए ज़रूरी है की भारत को ऐसी कांफ्रेंस बुलाने की पहल करनी चाहिए जिस में सभी पडोसी देश शामिल हों और सभी यह अहद करें कि कोई भी देश दूसरे के यहाँ हस्तक्षेप नहीं करेगा. इसके अलावा अफगानिस्तान को उसकी पारंपरिक तटस्थ स्थिति प्रदान की जाये. अंतिम बात यह कि भारत इस मामले में इरान को साथ रखे क्योंकि इरान इस समय पाकिस्तान से खार खाए बैठा है. पाकिस्तान से ही अब्दुल मालेकी रिगी इरान में आतंकवादी हमले करता है.
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