Monday, November 09, 2009

मृत्यु का सामना !

कुछ दिनों पहले अपनी भाभी को खोया है. उनके बाद जब प्रभाष जोशी जी का निधन हुआ और उनके शव को ताबूत में लेटा देखा तो सोचा यह मृत्यु भी अजीब चीज़ है. मैं यहाँ किसी दार्शनिक बहस को उभारना नहीं चाहता. जो भी बात करूंगा वह अनुभव और सामाजिक हकीकत पर करूंगा.
एक बात तो यह तय जान लें कि मृत्यु बहुत आनंद दायक क्षण है. कहने का मतलब यह कि जब मृत्यु हो रही हो, आदमी चेतना खो रहा हो, तो ये क्षण बहुत आनंद दायक होते हैं. थोडा आध्यात्मिक तौर पर कहें तो जब स्थूल शरीर, सूक्ष्म शरीर  और कारण शरीर  का संपर्क एक दूसरे से टूटने लगता है तो वह क्षण आनंद का होता है. यह मैं अनुभव से कह रहा हूँ क्योंकि मैं एक बार मरने की प्रक्रिया से गुज़र चुका हूँ.
बात २००४ की है, मैं मुंबई गया था अपनी बड़ी बहन को देखने जिनका कैंसर अंतिम चरणों में था. वे वहां माहिम के रहेजा हॉस्पिटल में भरती थीं और डॉक्टर अडवाणी उनका इलाज कर रहे थे. वापसी में दिल्ली राजधानी ट्रेन में था कि चिंता, दुःख और तरह-तरह की आशंकाओं ने मेरे दिल में हलचल पैदा कर दी और मेरे हृदय की गति राजधानी ट्रेन की गति से भी तेज़ हो गयी. किसी तरह राम-राम करते मुझे दिल्ली लाया गया. डॉक्टर ने फ़ौरन radio frequency ablation करवाने की सलाह दी और मुझे Delhi Heart and Lung Institute में भरती कर दिया गया. मुझ पर जब पांच डॉक्टर लोग अपना हुनर दिखा रहे थे तो कुछ देर के लिए मेरे दिल की धड़कनें बंद हो गयी थीं. वे क्षण मेरे लिए असीम सुख लेकर आये थे. डॉक्टर लोगों ने जल्द ही धड़कन फिर चालू कर दी थी, तभी तो आपसे हमकलाम हूँ.
यह बातें मैं इसलिए कर रहा हूँ क्योंकि मनुष्य को मृत्यु से नहीं डरना चाहिए. उसका स्वागत करना चाहिए. मरने के बाद तो होश रहता नहीं है, लेकिन मरने की जो प्रक्रिया होती है यानि प्राण निकलने की प्रक्रिया, वह बहुत सुखकर होती है. बस दुःख इसी बात का रह जाता है की आदमी के साथ उसका talent भी चला जाता है.

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