इस नई कहानी की शुरुआत कुछ इस तरह है -
"रात भर मेह बरसा था। भोर में देखा तो सब तरफ़ जल-थल हो रहा था। धान की बेरन तैयार हो चुकी थी और उन्हें लगाने का समय हो चला था। तभी लाला बढ़ई ने आकर बताया की कनचोदा मर गया।
मैंने छाता लिया और कनचोदे के घर की तरफ़ चल पड़ा। झीसी पड़ रही थी। गलियां दलदली हो रही थीं। गाँव की औरतें पलरी में धान की बेरने लेकर खेतों की तरफ़ चली जा रही थीं...."
रोज़ सुबह की तरह आज भी मैं राजपथ पर टहलने निकला। राजपथ वो नहीं जिसपर पैरेड
होता है, अपने घर के बाहर वाली सड़क को भी मैं राजपथ ही कहता हूँ। वैसे भी कहन...
2 years ago
1 comment:
इंतजार है इस नई कहानी को पढने का।
बुजरी के बाद तो अब शायद आपकी हर कहानी को पढने की ललक जाग उठी है :)
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