Wednesday, September 23, 2009
लालदेंगा वाली सुषमा और उनके चम्मच विधायक डागा
Friday, September 18, 2009
लगभग २५० साल पुरानी एक नज़्म यहाँ दे रहा हूँ, जिसे नजीर अकबराबादी ने लिखा है। पढ़ें और उस ज़माने की भाषा का लुत्फ़ उठायें -
बंजारा
इक हिर्सो हवा को छोड़ मियां
मत देस परदेस फिरे मारा
कज्जाक अजल का लूटे है
दिन - रात बजाकर नक्कारा।
क्या बधिया, भैसा, बैल, शुतर
क्या गोई, पिल्ला, सरभारा
क्या गेहूं, चावल, मोठ, मटर
क्या आग, धुआं, क्या अंगारा
सब थाट पड़ा रह जावेगा
जब लाद चलेगा बंजारा।
गर तू है लक्खी बंजारा
और खेत भी तेरी भारी है
ए गाफिल तुझ से भी चढ़ता
और बड़ा ब्योपारी है।
क्या शक्कर, मिसरी, कंद, गिरी
क्या सांभर मीठा, खारी है
क्या दाख, मुनक्का, सोंठ, मिर्च
क्या केसर, लौंग, सुपारी है
सब थाट पड़ा रह जावेगा
जब लाद चलेगा बंजारा।
ये बधिया लादे बैल भरे
जो पूरब - पच्छिम जावेगा
या सूद बढाकर लावेगा
या टूटा घाटा पावेगा
कज्जाक अजल का रस्ते में
जब भाला मार गिरावेगा
धन, दौलत, नाती, पोता क्या
इक कुनबा काम ना आवेगा
सब थाट पड़ा रह जावेगा
जब लाद चलेगा बंजारा।
सनद: यह पोस्ट उसी दिल्ली में लिखी गई जिस दिल्ली ने ना मीर की वकत की, ना ग़ालिब की। और लिखे जाने का बखत वही जब नौ दौलतिया वर्ग हंगोवर से जूझ रहा है। बकलम ख़ुद। लिख दिया ताकि सनद रहे और बखत पर काम आवे।
Sunday, September 06, 2009
मेहतर से भी गए गुज़रे
गांधीजी को पता कि जब तक अँगरेज़ जिन्ना को पाकिस्तान देने के लिए राज़ी नहीं होंगे तब तक जिन्ना कुछ नहीं कर पाएंगे। यही वजह थी गांधीजी ने माउंटबैटन से कहा था, "हिंदुस्तान छोड़ दें, फिर उसके बाद यहाँ अफरा-तफरी हो, अराजकता हो या चाहे जो हो। हम सब संभालेंगे।"
लेकिन नेहरू और पटेल के कारण उनकी एक नहीं चली।
पटेल तो माउंटबैटन के भारत पहुँचने से पहले ही पाकिस्तान की बात मान गए थे। उनको दो बार हार्ट अटैक हो चुका था, और वे डिबेट और बहसों से बचकर भारत के लिए जुटना चाहते थे। वे कहते थे कि जिन्ना को पाकिस्तान दे दो, वह कुछ वर्षों बाद भारत से दुबारा जुड़ने के लिए आ जायेंगे।
वहीं नेहरू को मनाने के लिए माउंटबैटन ने 'OPERATION SEDUCTION' शुरू किया जिसमें लेडी माउंटबैटन ने अहम् भूमिका निभाई। और नेहरू मान गए!!
महात्मा गाँधी को क्या आज भी मेहतर से भी गया गुज़रा नहीं माना जाता?
सनद - यह पोस्ट उसी दिल्ली में लिखी गई जहाँ की कोई चीज़ अपनी ख़ुद की नहीं । यहाँ तक कि मौसम भी नहीं। और लिखे जाने का बखत इतवार की अलसाई दुपहरी जब कुछ लोग पसर जाते हैं तो कुछ चिडिमार ब्लॉग में सर खपाते हैं। बकलम ख़ुद। लिख दिया ताकि सनद रहे और बखत पर काम आए।
Saturday, September 05, 2009
कौन है सेकुलर?
Tuesday, September 01, 2009
जीन्स पर बहस
आजकल जींस के बारे में काफी बहस चल पड़ी है। हमेशा ही चलती रही है। लेकिन इस बार तो हिन्दी के मान्यता प्राप्त कवि श्री राजेश जोशी भी मैदान में उतर आए हैं। सबसे पहले तो मैं साफ़ कर दूँ कि मैं जींस के ख़िलाफ़ नहीं हूँ। मेरी दोनों बेटियाँ जींस पहनती हैं। मैं यह भी मानता हूँ कि जींस में व्यक्ति स्मार्ट, चुस्त - दुरुस्त लगता है। वोह जींस पहनकर आसानी से काम कर सकता है। जींस टिकाऊ भी होती है और जल्दी ख़राब भी नहीं होती। शायद इसीलिए अमेरिका में कैदियों को जींस पहनाने का रिवाज चला। फिर उसके बाद हिंदुस्तान में आई लो वेस्ट वाली जींस। यह अमेरिका के कैदियों की देन है। अमेरिका में तो अब लोगों पर लो वेस्ट की जींस पहनने पर पाबन्दी भी लगा दी गई है।
हिन्दी के मान्यता प्राप्त कवि श्री राजेश जोशी ने एक सितम्बर के जनसत्ता में लिखा है कि जींस ने समाज में बराबरी पैदा कर दी है। लिखा है कि साड़ी और सलवार - कुरते में तो पहनने वाली कि औकात पता चल जाती है। कोई महँगी साड़ी और महंगा सलवार - कुरता पहनता है और कमतर पहनने वाली महिला को काम्प्लेक्स का शिकार होना पड़ता है। लेकिन जींस में ऐसा नहीं है।
यहाँ दो बातें हैं। पहली तो यह कि दो तरह की जींस बाज़ार में हैं। दिल्ली में पहले तरह की जींस टैंक रोड पर मिलती है जिसे आम लोग खरीदते हैं। दूसरी तरह की जींस मॉल्स, बड़े - बड़े शो रूम्स में मिलती है जिसे बड़े लोग ही खरीदते हैं। मॉल्स वाली जींस पहनने वाली लड़कियां टैंक रोड से खरीदी जींस पहनने वाली लड़कियों को नीची नज़रों से देखती हैं।
दूसरी बात यह कि हिन्दी के मान्यता प्राप्त कवि श्री राजेश जोशी ने सलवार - कुरते को जो कमतर बताया है तो मैं समझता हूँ कि उन्हें शायद यह पता नहीं कि साड़ी और सलवार - कुरता उपेक्षित लोगों का लिबास बन गए हैं। इन्हे पहनने वाली महिलाओं और लड़कियों को 'बहनजी' कहा जाता है, और जींस पहनने वाली बाला को आधुनिक!!
हिन्दी के मान्यता प्राप्त कवि श्री राजेश जोशी ने हुंकार भरी है कि जींस पहन कर ही कस्बाई मानसिकता और रहन - सहन वाली लड़की हर क्षेत्र में खटाखट आगे बढ़ सकती है। श्री जोशी ने कहा है कि जींस पहनने पर स्कूलों और कॉलेज में पाबन्दी नहीं लगायी जानी चाहिए जैसे जींस ही लड़कियों की तरक्की का अकेला रास्ता हो!